जन जन का दर्शन
Posted on 3:20 AM by Citizen

दरअसल यही तो है हमारे दर्शन का आधार। मुझे नहीं पता कि ये दर्शन क्या बला है लेकिन यहां तो एक अनपढ़ देहाती भी इसके सार को भली प्रकार समझता है। दर्शन जैसे गूढ़ विषय को यहां लोग इतनी सरलता से बखान कर देते हैं कि कि क्या कहें। वाकई कभी कभी तो ये इतना रोचक होता है कि जवाब नहीं।
मिड सैम में मैं घर आया तो कुछ पुराने दोस्तों के साथ गांव की सैर पर निकल गया। प्लान था कि खेत खेत का ट्यूवैल चलवाकर वहीं पानी में डुबकी लगाई जाएगी। खेत के पास ही भट्टे पर काम बहुत तेजी से चल रहा था। इस समय यहां चहल पहल खूब बढ़ जाती है। चलचिलाती घूप में भी मजदूर यहां डटे हुए हैं। देखा के दफ्तर से दोस्त के ताऊजी का ही है।
पास ही के खेत गेहूं की फसल कटाई का काम चल रहा था। गांव की सुन्दरता इसी समय अपने सबसे कठोर रूप में दिखाई देती है। सूरज आग बरसा रहा है और पारा आसमान छू रहा है…मज़दूर-मज़दूरिनों की जीवन्तता पर कोई फर्क नहीं…कुछ सेर अनाज और कुछ रुपयों के लिये 40-42 डिग्री तापमान में भी जी-तोड़ मेहनत करना और उसपर भी खिलखिलाकर हँसना…ये तो इसी धरती पर संभव है। मन में आया कि पांच सितारा एसी कमरों में ग्लोबल वार्मिंग पर माथा पीटने वाले अगर 5 मिनट भी यहां टिक जांए तो छठी का दूध याद आ जाए।
खैर ताऊजी मज़दूरों से कुछ खफा खफा से लगे। उनका कहना है कि मायावती के सत्ता में आते ही इनके दिमाग आसमान छूने लगते हैं। आज कल इनके नखरे ही नहीं मिलते। कुछके लड़के छोटी-मोटी सरकारी नौकरी क्या पा गये हैं … अपनी हद भूल गए हैं। कुछ तो मिजाज गरम और कुछ सूर्यदेवता की कृपा ताऊजी इन्हें इनकी औकात बताने का बीड़ा उठा लिया। वो अपने हवेलीनुमा घर, ज़मीन-जायदाद, खेत-खलिहान, ट्रक, ट्यूबवेल, बैंक-बैलेंस, और गाय बछड़ों का बखान करके अपनी हैसियत दिखाए जा रहे थे। जैसे किसी को इसके बारे में मालूम ही न हो। अरे गाँव में तो कोसों दूर तक लोग ये भी जानते हैं कि आज तुम्हारे घर कौन सा साग पका है पर हमारे ताऊजी तो ताऊजी हैं। उनके स्वभाव को सभी जानते हैं...
किसी को भी उनका इस तरह से डींगे हाँकना अच्छा नहीं लग रहा था। सबसे बड़े हैं तो टोकता कौन....! उन्हौने मजदूरों को औकात बताने का काम चालू रखा। वहीं नल के पास एक बूढ़ी मजदूर औरत बैठी बीड़ी पी रही थी। कफी देर तक ताऊजी का सुनती रही...लगा जैसे वो बहरी है उसे कुछ सुनाई ही नहीं देता। लेकिन अचानक महिला हँसकर बोली, “ए बाबा, ( हमारे यहाँ ब्राह्मणों को बाबा कहते हैं) काहे भभकत हउआ फुटही ललटेन मतिन। इ कुल तोहरे साथ न जाई चलत की बेरिया” (फूटी हुई लालटेन की तरह भभक क्यों रहे हो? ये सब संसार छोड़ते समय तुम्हारे साथ नहीं जायेगा)। लगा जैसे ताऊजी पर एक क्षण में घड़ों पानी पड़ गया और वो बड़बड़ाते हुये टैक्टर पर सवार हो चलते बने।…भला इसके आगे बोलते भी क्या???
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4 Response to "जन जन का दर्शन"
उपयोगी आलेख. साधुवाद.
कभी दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम पर पधारें.
यहाँ लेख कैसे भेजूं?
You can mail your article at info@filmyfriday.co.cc
Very nice and sensible.
You have that sense so that you can feel it
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