जन जन का दर्शन

Posted on 3:20 AM by Citizen

भारत तो है ही दार्शनिकों की धरती, दर्शन तो यहां की आबो हवा में है। यहाँ लोगों के मन में इसकी बड़ी गरही पैठ है। जनजीवन के हर पहलू में में रचा बसा है दर्शन। ऎसा भी नहीं की यहां लोग कर्मवादी नहीं हैं लेकिन कुछ हद भाग्यवादी तो हैं ही। इनमें भी तारतम्य इतना कि कर्मवादी लोग भी भाग्य पर भरोसा रखते हैं…और भाग्यवादी लोग भी कर्म करते हैं। एक आध को छोड़ दें तो सभी ये भी मानते हैं कि यह संसार मोहमाया है, यह शरीर भी नश्वर है। न यहाँ कोई कुछ लेकर आया है और न लेकर जायेगा। जाने अनपढ़ लोगों को भी कहाँ से इस दिव्य ज्ञान प्राप्त हो जाता है...! विविधता वाले इस देश में जीवन जीने का तरीका सबका है। कुछ मानते हैं कि जब हम यहाँ कुछ दिनों के लिये आये हैं, तो इस संसार के मोह में क्यों पड़ें? मोह करना है तो ईश्वर से करो, जिसके दरबार में आखिरकार जाना ही है। एक न एक दिन सभी को जाना है, छोटा-बड़ा, शिक्षित-अनपढ़, गरीब-अमीर, सेठ-साहूकार, सभी चले जायेंगे…इसपर कोई भेदभाव नहीं…अगर एक दिन ये जीवन नष्ट हो जायेगा तो इसे भरपूर जियो।

दरअसल यही तो है हमारे दर्शन का आधार। मुझे नहीं पता कि ये दर्शन क्या बला है लेकिन यहां तो एक अनपढ़ देहाती भी इसके सार को भली प्रकार समझता है। दर्शन जैसे गूढ़ विषय को यहां लोग इतनी स‌रलता से बखान कर देते हैं कि कि क्या कहें। वाकई कभी कभी तो ये इतना रोचक होता है कि जवाब नहीं।

मिड सैम में मैं घर आया तो कुछ पुराने दोस्तों के साथ गांव की सैर पर निकल गया। प्लान था कि खेत खेत का ट्यूवैल चलवाकर वहीं पानी में डुबकी लगाई जाएगी। खेत के पास ही भट्टे पर काम बहुत तेजी से चल रहा था। इस स‌मय यहां चहल पहल खूब बढ़ जाती है। चलचिलाती घूप में भी मजदूर यहां डटे हुए हैं। देखा के दफ्तर से दोस्त के ताऊजी का ही है।

पास ही के खेत गेहूं की फस‌ल कटाई का काम चल रहा था। गांव की सुन्दरता इसी स‌मय अपने स‌बसे कठोर रूप में दिखाई देती है। सूरज आग बरसा रहा है और पारा आसमान छू रहा है…मज़दूर-मज़दूरिनों की जीवन्तता पर कोई फर्क नहीं…कुछ सेर अनाज और कुछ रुपयों के लिये 40-42 डिग्री तापमान में भी जी-तोड़ मेहनत करना और उसपर भी खिलखिलाकर हँसना…ये तो इसी धरती पर संभव है। मन में आया कि पांच सितारा एसी कमरों में ग्लोबल वार्मिंग पर माथा पीटने वाले अगर 5 मिनट भी यहां टिक जांए तो छठी का दूध याद आ जाए।

खैर ताऊजी मज़दूरों से कुछ खफा खफा से लगे। उनका कहना है कि मायावती के स‌त्ता में आते ही इनके दिमाग आसमान छूने लगते हैं। आज कल इनके नखरे ही नहीं मिलते। कुछके लड़के छोटी-मोटी सरकारी नौकरी क्या पा गये हैं … अपनी हद भूल गए हैं। कुछ तो मिजाज गरम और कुछ सूर्यदेवता की कृपा ताऊजी इन्हें इनकी औकात बताने का बीड़ा उठा लिया। वो अपने हवेलीनुमा घर, ज़मीन-जायदाद, खेत-खलिहान, ट्रक, ट्यूबवेल, बैंक-बैलेंस, और गाय बछड़ों का बखान करके अपनी हैसियत दिखाए जा रहे थे। जैसे किसी को इसके बारे में मालूम ही न हो। अरे गाँव में तो कोसों दूर तक लोग ये भी जानते हैं कि आज तुम्हारे घर कौन सा साग पका है पर हमारे ताऊजी तो ताऊजी हैं। उनके स्वभाव को स‌भी जानते हैं...

किसी को भी उनका इस तरह से डींगे हाँकना अच्छा नहीं लग रहा था। स‌बसे बड़े हैं तो टोकता कौन....! उन्हौने मजदूरों को औकात बताने का काम चालू रखा। वहीं नल के पास एक बूढ़ी मजदूर औरत बैठी बीड़ी पी रही थी। कफी देर तक ताऊजी का सुनती रही...लगा जैसे वो बहरी है उसे कुछ सुनाई ही नहीं देता। लेकिन अचानक महिला हँसकर बोली, “ए बाबा, ( हमारे यहाँ ब्राह्मणों को बाबा कहते हैं) काहे भभकत हउआ फुटही ललटेन मतिन। इ कुल तोहरे साथ न जाई चलत की बेरिया” (फूटी हुई लालटेन की तरह भभक क्यों रहे हो? ये सब संसार छोड़ते समय तुम्हारे साथ नहीं जायेगा)। लगा जैसे ताऊजी पर एक क्षण में घड़ों पानी पड़ गया और वो बड़बड़ाते हुये टैक्टर पर स‌वार हो चलते बने।…भला इसके आगे बोलते भी क्या???

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Contributed by Santosh

4 Response to "जन जन का दर्शन"

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दिव्य नर्मदा divya narmada Says....

उपयोगी आलेख. साधुवाद.
कभी दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम पर पधारें.
यहाँ लेख कैसे भेजूं?

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Unknown Says....

Very nice and sensible.
You have that sense so that you can feel it

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